Saturday, 13 August 2011

आजादी

आजादी 
काश तुम सूरज होती 
तो जा सकती थी हर घर आँगन में ...

आजादी 
काश तुम वायु होती 
होती सचारित हर जीवन में

आजादी 
काश तुम  जल होती 
बहती निश्छल निष्कपट गंगा के जल में 

आजादी 
काश तुम आकाश होती 
झिलमिल तारो की छत होती हर जन गन मन  में 

आजादी 
काश तुम अग्नी होती 
बन कर लौ दीप की जलती मंदिर महल कुटिया में 

आजादी 
काश तुम कैद न होती 
संसद भवन  के गलियारों में 

1 comment:

  1. बहुत ही सुंदर लिखा है आपने आपकी कलम को सलाम

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