Saturday 25 February 2012

मोहब्बत तब भी थी मोहब्बत अब भी है

जब तक बात की मैंने महफ़िलो और जाम की
लोग मेरे साथ दौलते अपनी खूब लुटाते रहे
जिक्र छेड़ दिया जिस दिन एक बच्चे की भूख का
कतराते है जाने क्यों लोग, उस बच्चे की फ़रियाद पर .....

छलक जाती थी जिन की आंखे अक्सर
जिक्रे ऐ महबूब और उसके ख्याल में
हुई बात मोहब्बते वतन की जिस दिन
छिपाते है नज़रे, वो मेरी इस एक बात पर .....

खता थी मेरी या था वो उस वक्त का तकाजा
मोहब्बत तब भी थी मोहब्बत अब भी है
छलकती थी जो आंखे कभी महबूब की याद में
टपकता है लहू आँखों से अब, क्रांति के आगाज पर .....

खुदगर्ज ज़माने को भी कैसे कहू दोस्तों
कुछ इल्जाम तो चढ़ेगा मेरे भी नाम पर
मिट जाना भी देश पर नसीब की बात है
कहा हर कोई चढ़ सका है फासी, देश के नाम पर

मिट जाये देश पर कभी शैलेश तो न कहना मर गया दोस्तों
कहना बिछ गया है जमीन पर, माँ भारती की एक आवाज़ पर

No comments:

Post a Comment