कितना आसान था
माँ की गोद में सर रख
आसमान की बाते करना
कितना आसान था
पापा के संग बैठ कर
दुनिया के सैर की बाते करना
कितना आसान था
बहन की नन्ही झोली में
चुन चुन कर फूलो को भरना
कितना आसान था
भैया के संग दौड़ लगा कर
चाँद तारो तक पहुच जाना
पर अब आसान कुछ भी नहीं
न जिन्दगी... न घर... न रिश्ते...
टटोलती है माँ मेरी बुझती आँखों से आकाश
पापा मेरे सहारे चार कदम चलते है
बहन को राखी पर ही भेज पाता हु मनी आर्डर
अब दौड़ कर भी तय नहीं कर पाता फासला भैया के घर तक ...
अब मेरी अपनी एक दुनिया है ..........
CHOTI ... aur Choti hoti hui duniya hai... Bahut hi sarthak prastuti.
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक चित्रण है भाई अब अपनो से झगड़ भी नही पाते दिल खोल और झगड़ने पर अगले ही पल फ़िर हिल मिल जाना भी संभव नही रहा क्यों बड़े हो गये
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