Monday 6 June 2011

सफलता के 3 सूत्र सुन्दर काण्ड के सन्दर्भ में .


सुंदरकांड किसी भी कार्य में प्राप्त होने वाली सफलता का चरित्र है ...
तुलसीदास जी ने इस कांड की चौपाई की शुरुवात जामवंत जी से की है ........चलिए इस विषय पर थोड़ी चर्चा हो जाये..

जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥
जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा । चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥

भावार्थ:-जाम्बवान्‌ के सुंदर वचन सुनकर हनुमान्‌जी के हृदय को बहुत ही भाए। हनुमान जी ने सभी वनरो से कहा - हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह देखना.... जब तक मैं सीताजी को देखकर (लौट) न आऊँ। काम अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है। यह कहकर और सबको मस्तक नवाकर तथा हृदय में श्री रघुनाथजी को धारण करके हनुमान्‌जी हर्षित होकर चले 



सफलता के 3 सूत्र 

१ किसी कार्य की सफलता के लिए किसी बुजुर्ग / अनुभवी /माता पिता / गुरु की सलाह एवं उन का आदेश उस कार्य की सफलता को सुद्रिड करता है ....तो जब भी कार्य करे अपने से बड़ो की सलाह या उन के कहने के अनुसार कार्य करे ... क्यों की बुजुर्ग अपने ज्ञान और अनुभव से हमारे द्वारा कार्य निर्धारित करते है ..और वही हमारे सामर्थ के अनुसार कार्य निर्धारित कर सकते है ... जाम्बवंत जी का हुनमान जी को उन की शक्ति और बल का आभास करवाना और फिर उन को जाने के लिए प्रेरित करना इस बात का सूचक है...... तो ये मने की कार्य की सफलता का पहला सूत्र .... बुजुर्ग व्यक्ति (अनुभवी / माता पिता / गुरु ) की सलाह ले कर कार्य करे...

२. किसी भी कार्य के आरम्भ में हर्ष होना ......हर्ष आत्मविश्वास और कार्य के प्रति लगन या उत्सुकता को दर्शाता है ....और बुजुर्गो की सलाह के अनुसार कार्य करे तो सिर्फ काम निपटाना ही न हो उस पर आप की लगन और आत्मविश्वास हो जो आप को हर्षित करेगी ......कभी कभी हम काम तो करते है लेकिन बड़े बेमन से ..और वो काम बनता भी नहीं .....दोष हमारा ही हो जाता है ......... तो दूसरा सूत्र कार्य का आरम्भ बड़े आत्मविश्वास और हर्षित मन से करे...

३. किसी भी कार्य को करने के साथ साथ राम के प्रति लगन और पूर्ण विश्वास का होना ......कभी कभी हम सलाह ले कर भी कार्य करते है बहुत आत्मविश्वास के साथ भी करते है लेकिन हमारे मन का संदेह ....प्रभु या अपने अपने इष्ट के प्रति संदेह आप को दिग्भ्रमित कर सकता है ..........तो तीसरा सूत्र कोई भी कार्य करे ..प्रभु पर पूर्ण आस्था हो ...और उन के प्रति समर्पण ...

रामायण जी का पाठ और श्री हनुमान जी के दर्शन फल से जो मेरी समझ से है मैंने लिखा है .........या पूर्ण नहीं ...क्यों की मैं भी अभी पूर्ण नहीं हु ...आप सभी इस दिशा में और भी चर्चा करे तो शायद मैं भी कुछ ज्ञान प्राप्त कर सकू 

3 comments:

  1. sankshep mein pura saar likha hai apne , yahi satya hai !

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  2. Very nice. There are many other chaupayi in Sunder Kand - like Sachiv Ved Guru teen jo priye bole bhaya aas.....

    Please write this as a series of articles on Management principals from Sundarkand.

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