कितना आसान था,
माँ की गोद में सर रख,
आसमान की बाते करना।
कितना आसान था,
पापा के संग बैठ कर,
दुनिया के सैर की बाते करना।
कितना आसान था,
बहन की नन्ही झोली में,
चुन चुन कर फूलो को भरना।
पर अब आसान कुछ भी नहीं,
न जिन्दगी... न घर... न रिश्ते...।
टटोलती है माँ मेरी बुझती आँखों से आकाश,
पापा मेरे सहारे चार कदम चलते है,
अब मेरी अपनी एक दुनिया है ..........।
Thursday, 1 March 2012
देख रहा हु इन दिनों मेरे ख्वाब में वो आ नहीं आ रही है
आज भी नहीं आई अगर तो सोचता हु कल से ......
उस के घर सामने पहरेदार बिठा दू ....
आखिर जाती कहा है मेरे ख्वाबो में आना छोड़ कर .....
एक खवाब ही उम्मीद है उन से मिल पाने की ..खिलखिलाने की ......
आखिरी वो उम्मीद भी जाने दू कैसे ??
छत्तीसगढ़ ब्लॉगर्स चौपाल में आपका स्वागत है.
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