कितना आसान था,
माँ की गोद में सर रख,
आसमान की बाते करना।
कितना आसान था,
पापा के संग बैठ कर,
दुनिया के सैर की बाते करना।
कितना आसान था,
बहन की नन्ही झोली में,
चुन चुन कर फूलो को भरना।
पर अब आसान कुछ भी नहीं,
न जिन्दगी... न घर... न रिश्ते...।
टटोलती है माँ मेरी बुझती आँखों से आकाश,
पापा मेरे सहारे चार कदम चलते है,
अब मेरी अपनी एक दुनिया है ..........।
Thursday, 15 December 2011
चुपके से यु उस का मुझ से दूर चले जाना
पीछे उस के सवाल हज़ार छोड़ गया
न आया पसंद उसे वफ़ा का चलन
एक जरा सी बात पर इतना बवाल छोड़ गया
कौन रोक सका है किसी की बिदाई का क्षण
वापसी की राह में लेकिन ये कैसा मलाल छोड़ गया
bhaut khub....
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