कितना आसान था, माँ की गोद में सर रख, आसमान की बाते करना। कितना आसान था, पापा के संग बैठ कर, दुनिया के सैर की बाते करना। कितना आसान था, बहन की नन्ही झोली में, चुन चुन कर फूलो को भरना। पर अब आसान कुछ भी नहीं, न जिन्दगी... न घर... न रिश्ते...। टटोलती है माँ मेरी बुझती आँखों से आकाश, पापा मेरे सहारे चार कदम चलते है, अब मेरी अपनी एक दुनिया है ..........।
Thursday, 1 March 2012
Saturday, 25 February 2012
मोहब्बत तब भी थी मोहब्बत अब भी है
जब तक बात की मैंने महफ़िलो और जाम की
लोग मेरे साथ दौलते अपनी खूब लुटाते रहे
जिक्र छेड़ दिया जिस दिन एक बच्चे की भूख का
कतराते है जाने क्यों लोग, उस बच्चे की फ़रियाद पर .....
छलक जाती थी जिन की आंखे अक्सर
जिक्रे ऐ महबूब और उसके ख्याल में
हुई बात मोहब्बते वतन की जिस दिन
छिपाते है नज़रे, वो मेरी इस एक बात पर .....
खता थी मेरी या था वो उस वक्त का तकाजा
मोहब्बत तब भी थी मोहब्बत अब भी है
छलकती थी जो आंखे कभी महबूब की याद में
टपकता है लहू आँखों से अब, क्रांति के आगाज पर .....
खुदगर्ज ज़माने को भी कैसे कहू दोस्तों
कुछ इल्जाम तो चढ़ेगा मेरे भी नाम पर
मिट जाना भी देश पर नसीब की बात है
कहा हर कोई चढ़ सका है फासी, देश के नाम पर
मिट जाये देश पर कभी शैलेश तो न कहना मर गया दोस्तों
कहना बिछ गया है जमीन पर, माँ भारती की एक आवाज़ पर
लोग मेरे साथ दौलते अपनी खूब लुटाते रहे
जिक्र छेड़ दिया जिस दिन एक बच्चे की भूख का
कतराते है जाने क्यों लोग, उस बच्चे की फ़रियाद पर .....
छलक जाती थी जिन की आंखे अक्सर
जिक्रे ऐ महबूब और उसके ख्याल में
हुई बात मोहब्बते वतन की जिस दिन
छिपाते है नज़रे, वो मेरी इस एक बात पर .....
खता थी मेरी या था वो उस वक्त का तकाजा
मोहब्बत तब भी थी मोहब्बत अब भी है
छलकती थी जो आंखे कभी महबूब की याद में
टपकता है लहू आँखों से अब, क्रांति के आगाज पर .....
खुदगर्ज ज़माने को भी कैसे कहू दोस्तों
कुछ इल्जाम तो चढ़ेगा मेरे भी नाम पर
मिट जाना भी देश पर नसीब की बात है
कहा हर कोई चढ़ सका है फासी, देश के नाम पर
मिट जाये देश पर कभी शैलेश तो न कहना मर गया दोस्तों
कहना बिछ गया है जमीन पर, माँ भारती की एक आवाज़ पर
Thursday, 23 February 2012
नव गाथा
हे विष्णु हे नाथ जगत के
एक बार फिर सुदर्शन चलाना होगा
घूम रहे थे भोले भंडारी कंधे पर ले
मृत सती कि काया
सृजन रुका था विनाश टला था
हर दुष्टों का संघार रुका था
तुम ही तो थे जिस ने चला कर चक्र
छिन्न भिन्न की सती की काया
हम मानव ने अब सिर्फ ग्रन्थ पढ़ा
और घूम रहे है अपने कंधो पर ले
अपने ही मृत संस्कारो अहिंसा की काया
बढ़ रही है फिर देश में दुष्टों की छाया
हे जनार्दन अब देर नहीं करो
चला कर चक्र छीन भिन्न करो फिर से
हमारे इन कुंठित मन की काया
शंख नाद अब करना होगा
क्रांति का एक नया सूत्रपात करना होगा
रन चंडी अब माता - बहने बने
हर देश भक्त के हाथो में हो अब जहर का प्याला
केश धुले अब माँ भारती का दुष्टों के रक्त से
बच्चा बच्चा बोले हर हर महादेव का नारा
स्थापना हो माँ भारती की निज आसन पर
लिखे इतिहास फिर हिन्दू की गौरव गाथा
हे गदा चक्रधारी नाथ जगत के
एक बार फिर सुदर्शन चलाना होगा
Friday, 2 December 2011
शाम के डूबते सूरज के साथ हर रोज
दिल में मेरे एक दस्तक सी देता जाने कौन है
थक के निढाल हो जाता हु जब दिन भर की थकन से
ठंडी पुरवाई सा मेरे रूह के आप पास जाने चलता कौन है
काली सर्द रातो में जब ठिठुर सा जाता हु
चादर सा मेरे रूह पर बिछ जाता जाने कौन है
चादर सा मेरे रूह पर बिछ जाता जाने कौन है
खवाब में पा कर उसे जब धड़कता है तेज दिल मेरा बार बार
मेरे सीने में अपना सर रख मेरी धड़कनों को सुनता जाने कौन है
मेरे सीने में अपना सर रख मेरी धड़कनों को सुनता जाने कौन है
सुबह को जब होता हु मैं नींद के आगोश में
बालो में मेरे उगंलिया सी फेर कर जाने उठाता मुझे कौन है
बालो में मेरे उगंलिया सी फेर कर जाने उठाता मुझे कौन है
दिन की आपा धापी में हो जाता हु मैं मशगुल बहुत
हर कदम से कदम मिला कर साथ मेरे जाने चलता कौन है
हर कदम से कदम मिला कर साथ मेरे जाने चलता कौन है
वो तो चली गई थी कभी मुझ से बहुत दूर कही .
फिर भी उस सा मेरे दिल में जाने ये धड़कता कौन है
फिर भी उस सा मेरे दिल में जाने ये धड़कता कौन है
Wednesday, 28 September 2011
एक अरसा हुआ खुद को हसते हुए देखे
चलो आज बचपन के कुछ खेल खेले हम
जमाना बदल गया पर दस्तूर अब भी वही तो पुराना है
चलो आज किसी से रूठे .और किसी रूठे हुए को मना ले हम
कुरेद के दिल के जख्मो को अब जान लो कुछ न होगा
आओ कुछ खेल खेले बचपन के और जख्मो को सी ले हम
टूटे खिलौना कोई और बच्चे का मचल कर रोना
चलो आज दिल के कुछ दाग यु ही धो ले हम
Tuesday, 27 September 2011
जो भगत सिंह माँ भारती के गौरव के लिए हसते हसते फासी में चढ़ गए
आज देख माँ भारती की दुर्दशा मेरे सपने में आकर फूट फूट कर रोते है
................
मत देखो मेरी ओर
अपनी यु नम आँखों से
क्यों की नहीं है मेरे पास
भगत सिंह तुम्हारे सवालो का कोई जवाब
रक्त प्रवाहित है अब भी मेरी रगों में
प्राण अभी भी है शेष
फिर क्या कहू तुम से
ये तुम्हारी जयंती मनाना
यु माला पहना कर तुम्हारा महिमा मंडन
जानता हु ये तो नहीं था कभी तुम्हारा उद्देश्य
क्या करू इस देश में अब भी
भाषा गाँधी वाद की कायरता है
वन्दे मातरम अब सांप्रदायिक बना देश में
हिन्दुओ पर छाई धर्मनिरपेक्षता की काली छाया है
विदेशियों का नमक खाने वाले लोगो ने
सारे देश में अब सत्याग्रह का जाल फैलाया है
भगत सिंह मैं क्या जवाब दू तुम को
मौन हु ....आँखों में आंसू है ....हाथ काप रहे क्रोध से ...
फिर भी माँ भारती का गौरव अब तक
हम ने कहा लौटाया है .........
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